Latest posts by Samrat

Something About Me

मेरी फ़ोटो
Love City Sirsa, Haryana, India
This Is Samrat.A Simple Person Wid Unique quality.

फ़रवरी 09, 2012

लोक सभा, भारतीय संसद का निचला सदन है. भारतीय संसद का ऊपरी सदन राज्य सभा है. लोक सभा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर लोगों द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से गठित होती है. भारतीय संविधान के अनुसार सदन में सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है, जिसमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों का और 20 सदस्य तक केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. सदन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति यदि चाहे तो आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो प्रतिनिधियों को लोक सभा के लिए मनोनीत कर सकता है. कुल निर्वाचित सदस्यता का वितरण राज्यों के बीच इस तरह से किया जाता है कि प्रत्येक राज्य को आवंटित सीटों की संख्या और राज्य की जनसंख्या के बीच एक व्यावहारिक अनुपात हो, और यह सभी राज्यों पर लागू होता है. हालांकि वर्तमान परिपेक्ष्य में राज्यों की जनसंख्या के अनुसार वितरित सीटों की संख्या के अनुसार उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व, दक्षिण भारत के मुकाबले काफी कम है. जहां दक्षिण के चार राज्यों, तमिलनाडु , आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल को जिनकी संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का सिर्फ 21% है, को 129 लोक सभा की सीटें आवंटित की गयी हैं जबकि, सबसे अधिक जनसंख्या वाले हिन्दी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार जिनकी संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का 25.1% है के खाते में सिर्फ 120 सीटें ही आती हैं.[1] वर्तमान में अध्यक्ष और आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो मनोनीत सदस्यों को मिलाकर, सदन की सदस्य संख्या 545 है।

राज्यों के अनुसार सीटों की संख्या

लोक सभा की सीटें निम्नानुसार 28 राज्यों और 7 केन्द्र शासित प्रदेशों के बीच विभाजित है:


लोक सभा का कार्यकाल

यदि समय से पहले भंग ना किया जाये तो, लोक सभा का कार्यकाल अपनी पहली बैठक से लेकर अगले पाँच वर्ष तक होता है उसके बाद यह स्वत: भंग हो जाती है. लोक सभा के कार्यकाल के दौरान यदि आपातकाल की घोषणा की जाती है तो संसद को इसका कार्यकाल कानून के द्वारा एक समय में अधिकतम एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार है, जबकि आपातकाल की घोषणा समाप्त होने की स्थिति में इसे किसी भी परिस्थिति में छ: महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता.

पीठासीन अधिकारी

लोक सभा अपने निर्वाचित सदस्यों में से एक सदस्य को अपने पीठासीन अधिकारी के रूप में चुनती है, जिसे अध्यक्ष कहा जाता है. कार्य संचालन में अध्यक्ष की सहायता उपाध्यक्ष द्वारा की जाती है, जिसका चुनाव भी लोक सभा के निर्वाचित सदस्य करते हैं. लोक सभा में कार्य संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष का होता है

लोक सभा

प्रथम लोकसभा का गठन 17 अप्रैल, 1952 को हुआ था। इसकी पहली बैठक 13 मई, 1952 को हुई थी। लोकसभा के गठन के सम्बन्ध में संविधान के दो अनुच्छेद, यथा 81 तथा 331 में प्रावधान किया गया है। मूल संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निर्धारित की गयी थी, किन्तु बाद में इसमें वृद्धि की गयी। 31वें संविधान संशोधन, 1974 के द्वारा लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 547 निश्चित की गयी। वर्तमान में गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि लोकसभा अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है। अनुच्छेद 81(1) (क) तथा (ख) के अनुसार लोकसभा का गठन राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए 530 से अधिक न होने वाले सदस्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले 20 से अधिक न होने वाले सदस्यों के द्वारा किया जाएगा। इस प्रकार लोकसभा में भारत की जनसंख्या द्वारा निर्वाचित 550 सदस्य हो सकते हैं। अनुच्छेद 331 के अनुसार यदि राष्ट्रपति की राय में लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व न मिला हो तो वह आंग्ल भारतीय समुदाय के दो व्यक्तियों को लोकसभा के लिए नामनिर्देशित कर सकता है। अत: लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है। यह संख्या लोकसभा के सदस्यों की सैद्धान्तिक गणना है और व्यहावहरत: वर्तमान समय में लोकसभा की प्रभावी संख्या 530 (राज्यों के प्रतिनिधि) + (संघ क्षेत्रों के प्रतिनिधि) + 2 राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित = 545 है।  

स्थानों का आबंटन

लोकसभा में स्थानों को आबंटित करने के लिए दो प्रक्रिया अपनायी जाती हैं-
  1. पहला प्रत्येक राज्य को लोकसभा में स्थानों का आबंटन ऐसी रीति से किया जाता है कि स्थानों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो, तथा
  2. दूसरा प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो। 

सीटों की संख्या और प्रकार

  • सामान्य/आम निर्वाचन क्षेत्र - 423
  • अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र - 79
  • अनुसूचित जनजाति हेतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र - 41
  • आंग्ल भारतीय समुदाय के मनोनयन के लिए निर्धारित सीट - 2
कुल सीटें = 545 (543+2)

निर्वाचन

लोकसभा के सदस्य भारत के उन नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं, जो कि वयस्क हो गये हैं। 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 के पूर्व उन नागरिकों को वयस्क माना जाता था, जो कि 21 वर्ष की आयु पूरी कर लेते थे, लेकिन इस संशोधन के द्वारा यह व्यवस्था कर दी गई कि 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाला नागरिक लोकसभा या राज्य विधानसभा के सदस्यों को चुनने के लिए वयस्क माना जाएगा। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मतदान के आधार पर होता है। भारत में 1952 से लेकर अब तक की अवधि में 15 लोकसभा चुनाव हुए हैं। 15 लोकसभा चुनाव हुए हैं

अवधि

लोकसभा का गठन अपने प्रथम अधिवेशन की तिथि से पाँच वर्ष के लिए होता है, लेकिन प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष के पहले भी किया जा सकता है। प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन जब कर दिया जाता है, तब लोकसभा का मध्यावधि चुनाव होता है, क्योंकि संविधान के अनुसार लोकसभा विघटन की स्थिति में 6 मास से अधिक नहीं रह सकती। ऐसा इसीलिए भी आवश्यक है, क्योंकि लोकसभा के दो बैठकों के बीच का समयान्तराल 6 मास से अधिक नहीं होना चाहिए। अब तक लोकसभा का उसके गठन के बाद 5 वर्ष के भीतर चार बार अर्थात् 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर, 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चरण सिंह की सलाह पर, 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की सलाह पर, 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल की सलाह पर और 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर विघटन हुआ और इस प्रकार मध्यावधि चुनाव कराये गये।
विशेष परिस्थिति में लोकसभा की अवधि 1 वर्ष के लिए बढ़ायी जा सकती है। परन्तु लोकसभा की अवधि एक बार में 1 वर्ष से अधिक नहीं बढ़ायी जा सकती और किसी भी स्थिति में आपातकाल की उदघोषणा की समाप्ति के बाद लोकसभा की अवधि 6 माह से अधिक नहीं बढ़ायी जा सकती है, अर्थात् आपात उदघोषणा की समाप्ति के बाद 6 माह के अन्दर लोकसभा का सामान्य चुनाव कराकर उसका गठन आवश्यक है। भारत में पाँचवीं लोकसभा की अवधि 6 फ़रवरी, 1976 को 1 वर्ष के लिए अर्थात् 18 मार्च, 1976 से 18 मार्च, 1977 तक तथा बाद में नवम्बर, 1976 में 18 मार्च, 1977 से 18 मार्च, 1978 तक के लिए बढ़ा दी गयी थी, लेकिन जनवरी, 1977 को ही प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन कर दिया गया और मार्च, 1977 में छठवीं लोकसभा का चुनाव कराया गया।

अधिवेशन

लोकसभा का अधिवेशन 1 वर्ष में कम से कम दो बार होना चाहिए लेकिन लोकसभा के पिछले अधिवेशन की अन्तिम बैठक की तिथि तथा आगामी अधिवेशन के प्रथम बैठक की तिथि के बीच 6 मास से अधिक का अन्तराल नहीं होना चाहिए, लेकिन यह अन्तराल 6 माह से अधिक का तब हो सकता है, जब आगामी अधिवेशन के पहले ही लोकसभा का विघटन कर दिया जाए। अनुच्छेद 85 के तहत राष्ट्रपति को समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन, राज्यसभा एवं लोकसभा को आहुत करने, उनका सत्रावसान करने तथा लोकसभा का विघटन करने का अधिकार प्राप्त है।

विशेष अधिवेशन

राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को नामंज़ूर करने के लिए लोकसभा का विशेष अधिवेशन तब बुलाया जा सकता है, जब लोकसभा के अधिवेशन में न रहने की स्थिति में कम से कम 110 सदस्य राष्ट्रपति को अधिवेशन बुलाने के लिए लिखित सूचना दें या जब अधिवेशन चल रहा हो, तब लोकसभा को इस आशय की लिखित सूचना दें। ऐसी लिखित सूचना अधिवेशन बुलाने की तिथि के 14 दिन पूर्व देनी पड़ती है। ऐसी सूचना पर राष्ट्रपति या लोकसभाध्यक्ष अधिवेशन बुलाने के लिए बाध्य हैं।

पदाधिकारी

लोकसभा के निम्नलिखित दो पदाधिकारी होते हैं-
  1. अध्यक्ष और
  2. उपाध्यक्ष। 

कार्य एवं शक्तियाँ

लोकसभाध्यक्ष का कार्य एवं शक्तियाँ लोकसभा के सम्बन्ध में काफ़ी अधिक है, जिनका वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
व्यवस्था सम्बन्धी शक्तियाँ
लोकसभाध्यक्ष को लोकसभा में व्यवस्था बनाये रखने के सम्बन्ध में निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं-
  1. कार्रवाई संचालित करने के लिए सदन में व्यवस्था व मर्यादा बनाए रखना।
  2. सदन की कार्रवाई के लिए समय का निर्धारण करना।
  3. संविधान और सदन के प्रक्रिया सम्बन्धी नियमों की व्याख्या करना।
  4. विवादास्पद विषयों पर मतदान कराना और निर्णय की घोषणा करना।
  5. मतदान में पक्ष तथा विपक्ष में बराबर मत पड़ने की स्थिति में निर्णायक मत देना देना।
  6. प्रस्ताव, प्रतिवेदन और व्यवस्था के प्रश्नों को स्वीकार करना।
  7. मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य को पदत्याग करने की स्थिति में उसे सदन के समक्ष अपना वक्तव्य देने की अनुमति देना।
  8. सदस्यों को जानकारी प्राप्त करने के लिए विचाराधीन महत्त्वपूर्ण विषयों की घोषणा करना।
  9. संविधान सम्बन्धी मामलों पर अपनी सम्मति देना।
  10. गणपूर्ति के अभाव में सदन की बैठक को स्थगित करना।
  11. किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में बोलने की अनुमति देना तथा उसके भाषण के हिन्दी और अंग्रेज़ी अनुवाद की व्यवस्था करना।
  12. सदन के नेता के अनुरोध पर सदन की गुप्त बैठक को आयोजित करने की स्वीकृति प्रदान करना। 
  प्रशासन सम्बन्धी शक्तियाँ
अध्यक्ष को सदन के प्रशासन के सम्बन्ध में निम्नलिखत शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं-
  1. लोकसभा के सचिवालय पर नियत्रंण रखना।
  2. लोकसभा की दर्शक दीर्घा और प्रेस दीर्घा पर नियंत्रण रखना।
  3. लोकसभा सदस्यों के लिए आवास तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करना।
  4. लोकसभा तथा उसकी समितियों की बैठकों की व्यवस्था करना।
  5. संसदीय कार्रवाई के अभिलेखों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था करना।
  6. लोकसभा के सदस्यों तथा कर्मचारियों के जीवन और सदन की सम्पत्ति की सुरक्षा की उपयुक्त व्यवस्था करना।
  7. लोकसभा के सदस्यों का त्यागपत्र स्वीकार करना अथवा उसे इस आधार पर अस्वीकार करना कि त्यागपत्र विवशता के कारण दिया गया है। 

लोकसभा की शक्तियाँ

अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का निर्वाचन तथा उन्हें पद से हटाना

मंत्रिपरिषद् पर नियंत्रण

वित्त पर नियंत्रण

सदन में स्थान रिक्त घोषित करना

यदि लोकसभा का कोई सदस्य लोकसभा की अनुमति के बिना सदन से 60 दिन तक अनुपस्थित रहे, तो लोकसभा उस स्थान को रिक्त घोषित कर सकती है। लेकिन इस 60 दिन की अवधि की गणना करते समय उस अवधि को नहीं शामिल किया जाता, जब सदन का सत्र लगातार चार दिन तक स्थगित रहे या सदन का सत्रावसान रहे।

राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा
लोकसभा अनुच्छेद 352 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा जारी राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा को भी नामंज़ूर कर सकती है। ऐसी नामंज़ूरी लोकसभा का विशेष अधिवेशन बुलाकर की जाती है। सदन का विशेष अधिवेशन लोकसभा अध्यक्ष, जब सदन का अधिवेशन चल रहा हो, या राष्ट्रपति, जब लोकसभा का अधिवेशन न चल रहा हो, को सदन के 10% सदस्यों के द्वारा 14 दिन पूर्व लिखित सूचना देकर बुलाया जा सकता है। ऐसी सूचना की प्राप्ति पर लोकसभा अध्यक्ष या राष्ट्रपति विशेष अधिवेशन बुलाने के लिए बाध्य हैं।
सदन से सदस्य को निष्कासित करना तथा सदस्य के निष्कासन को रद्द करना
यदि लोकसभा का कोई सदस्य अपने कार्यों से लोकसभा की गरिमा का उल्लंघन करता है या सदन के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करता है, तो लोकसभा उस सदस्य को सदन से निष्कासित कर सकती है। 1993 तक लोकसभा ने अब तक इस अधिकार केवल दो बार प्रयोग किया है।
जेल भेजन की शक्ति
जो व्यक्ति लोकसभा के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करता है, उसे लोकसभा के द्वारा जल भेजा जा सकता है। इस अधिकार का प्रयोग सबसे पहले 1977 में किया गया था, जब इन्द्रदेव सिंह को लोकसभा में पर्चे फेंकने के कारण तिहाड़ जेल भेजा गया था। जब श्रीमती इंदिरा गांधी को 1978 में लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित किया गया था, तब उन्हें भी संसद के अधिवेशन, जिसमें उन्हें निष्कासित किया गया था, तक के लिए भेज गया था।
नियम बनाने तथा निलम्बित करने की शक्ति
लोकसभा को सदन की कार्रवाई संचालित करने के लिए प्रक्रिया सम्बन्धी नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है। साथ ही वह इन नियमों को निलम्बित भी कर सकती है।


राज्य सभा

भारतीय संविधान के प्रवर्तन के बाद 'काउंसिल ऑफ स्टेट्स' (राज्यसभा) का गठन सर्वप्रथम 3 अप्रैल, 1952 को किया गया था। इसकी पहली बैठक 13 मई, 1952 को हुई थी। इसकी अध्यक्षता तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा की गई थी। 23 अगस्त 1954 को सभापति ने सदन में घोषणा की कि, ‘काउंसिल ऑफ स्टेट्स’ को अब राज्यसभा के नाम से जाना जाएगा।

गठन

संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्यसभा का गठन 250 सदस्यों द्वारा होगा, इनमें से 12 सदस्यों के नाम राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित किये जाते हैं तथा शेष 238 का चुनाव राज्य तथा संघ राज्यक्षेत्रों की विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है। राज्यसभा में राज्यों तथा संघ राज्यक्षेत्रों की विधान सभाओं के लिए आवंटित स्थान को संविधान की चौथी अनुसूची में अन्तर्विष्ट किया गया है। इस अनुसूची में केवल 233 स्थानों के सम्बन्ध में उल्लेख किया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि, वर्तमान समय में राज्यसभा की प्रभावी संख्या 245 (राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्यों सहित) है। वे 12 सदस्य जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया जाता है, उन्हें साहित्य, विज्ञान, कला तथा समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए।

अप्रत्यक्ष चुनाव

राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है। राज्यों के प्रतिनिधियों का चुनाव राज्यों की विधानसभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है तथा संघराज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का चुनाव उस ढंग से किया जाता है, जिसे संसद विधि बनाकर विहित करे। राज्यसभा में केवल दो संघ राज्यक्षेत्रों- यथा राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र दिल्ली तथा पाण्डिचेरी, के लिए स्थानों को आवंटित किया गया है। इन राज्य क्षेत्रों के आवंटन में राज्यसभा के स्थानों को भरने के लिए निर्वाचकगणों को गठित करने के सम्बन्ध में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा '27-क' में संसद द्वारा उस ढंग को विहित किया गया है, जिसके अनुसार पाण्डिचेरी संघ राज्यक्षेत्र के लिए आवंटित स्थान को इस संघ राज्य क्षेत्र के विधान सभा के सदस्यों द्वारा चुने गये व्यक्ति से भरा जाएगा तथा दिल्ली के सम्बन्ध में इस धारा में कहा गया था कि, "दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र के राज्यसभा सदस्य का चुनाव महानगर के परिषद के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाएगा, लेकिन दिल्ली में विधानसभा के गठन के बाद स्थिति में परिवर्तन हो गया है"

अवधि

राज्यसभा का कभी विघटन नहीं होता। इसके सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। इसके सदस्यों में से एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष पदमुक्त हो जाते हैं तथा पदमुक्त होने वाले सदस्यों के स्थानों को भरने के लिए प्रत्येक दूसरे वर्ष चुनाव होता है। यदि कोई सदस्य त्यागपत्र दे देता है या उसकी आकस्मिक मृत्यु के कारण कोई स्थान रिक्त होता है, तो इस रिक्त स्थान के लिए उपचुनाव होता है।

अधिवेशन

राज्यसभा का एक वर्ष में दो बार अधिवेशन होता है, लेकिन इसके अधिवेशन की अन्तिम बैठक तथा आगामी अधिवेशन की प्रथम बैठक के लिए नियत तिथि के बीच 6 माह का अन्तर नहीं होना चाहिए। सामान्यतया राज्यसभा का अधिवेशन तभी बुलाया जाता है, जब लोकसभा का अधिवेशन बुलाया जाता है। परन्तु संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 के अधीन आपात काल की घोषणा के बाद तब राज्य सभा का विशेष अधिवेशन बुलाया जा सकता है, जब लोकसभा का विघटन हो गया हो।

पदाधिकारी

राज्यसभा के निम्नलिखित पदाधिकारी होते हैं-

सभापति

भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। यह राज्यसभा की कार्यवाही के संचालन तथा सदन में अनुशासन बनाये रखने के लिए उत्तरदायी होता है। सभापति राज्यसभा के नये सदस्यों को पद की शपथ दिलाता है। उपराष्ट्रपति द्वारा कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान राज्यसभा के सभापति के रूप में उपसभापति द्वारा दायित्वों का निर्वहन किया जाता है।

उपसभापति

राज्यसभा अपने सदस्यों में से किसी को अपना उपसभापति चुनेगी और जब उपसभापति का पद रिक्त होता है, तब राज्यसभा किसी अन्य सदस्य को अपना उपसभापति चुनेगी। इस प्रकार चुना गया उपसभापति, सभापति की अनुपस्थिति में उसके कार्यों का निर्वाह करता है। 14 मई, 2002 को संसद द्वारा पारित विधेयक के अनुसार उपसभापति को केन्द्रीय राज्य मंत्री के समान भत्ता देने का प्रावधान किया गया है। उप सभापति निम्नलिखित स्थिति में अपना पद रिक्त कर सकता है-

  1. जब वह राज्यसभा का सदस्य न रह जाय।
  2. जब वह सभापति को अपना त्यागपत्र दे दे।
  3. जब तक वह राज्यसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से न हटा दिया जाय, लेकिन ऐसा कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा, जब तक कि इस #संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन पूर्व सूचना न दे दी गई हो।

अन्य व्यक्ति

जब सभापति तथा उपसभापति दोनों अनुपस्थित हों, तो राज्यसभा के सभापति के कार्यों का निर्वहन राज्यसभा का वह सदस्य करेगा, जिसका नाम राष्ट्रपति निर्देशित करे और राज्यसभा की बैठक में वह व्यक्ति सभापति के कार्यों का निर्वाह करेगा, जिसे राज्यसभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा या राज्यसभा द्वारा अवधारित किया जाय।







 

    















कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें