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फ़रवरी 09, 2012

मानहानि का दावा क्या है? और कैसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है?

मानहानि के लिए दो तरह की कार्यवाहियाँ की जा सकती हैं। उस के लिए आप अपराधिक मुकदमा चला कर मानहानि करने वाले व्यक्तियों और उस में शामिल होने वाले व्यक्तियों को न्यायालय से दंडित करवाया जा सकता है। दूसरा मार्ग यह है कि यदि मानहानि से किसी व्यक्ति की या उस के व्यवसाय की या दोनों की कोई वास्तविक हानि हुई है तो वह उस का हर्जाना प्राप्त करने के लिए दीवानी दावा न्यायालय में प्रस्तुत कर सकता है और हर्जाना प्राप्त कर सकता है। दोनों मामलों में अन्तर यह है कि अपराधिक मामले में जहाँ नाममात्र का न्यायालय शुल्क देना होता है वहीं हर्जाने के दावे में जितना हर्जाना मांगा गया है उस के पाँच से साढ़े सात प्रतिशत के लगभग न्यायालय शुल्क देना पडता है जिस की दर अलग अलग राज्यों में अलग अलग है। हम यहाँ पहले अपराधिक मामले पर बात करते हैं।किसी भी व्यक्ति को सब से पहले तो यह जानना होगा कि मानहानि क्या है? मानहानि को भारतीय दंड संहिता में एक अपराधिक कृत्य भी माना गया है और इसे धारा ४९९ में इस तरह परिभाषित किया गया है -

जो कोई बोले गए, या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य निरूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की खयाति की अपहानि की जाएया यह जानते हुए या विश्र्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की खयाति की अपहानि होगी अपवादों को छोड कर यह कहा जाएगा कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है।

यहाँ मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आता है, यदि वह लांछन उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उस की खयाति की अपहानि होती और उस के परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को चोट पहुँचाने के लिए आशयित हो। किसी कंपनी, या संगठन या व्यक्तियों के समूह के बारे में भी यही बात लागू होगी। व्यंगोक्ति के रूप में की गई अभिव्यक्ति भी इस श्रेणी में आएगी। इसी तरह मानहानिकारक अभिव्यक्ति को मुद्रित करना, या विक्रय करना भी अपराध है।लेकिन किसी सत्य बात का लांछन लगाना, लोक सेवकों के आचरण या शील के विषय में सद्भावनापूर्वक राय अभिव्यक्ति करना तथा किसी लोक प्रश्र्न के विषय में किसी व्यक्ति के आचरण या शील के विषय में सद्भावना पूर्वक राय अभिव्यक्त करना तथा न्यायालय की कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग भी इस अपराध के अंतर्गत नहीं आएँगी। इसी तरह किसी लोककृति के गुणावगुण पर अभिव्यक्त की गई राय जिसे लोक निर्णय के लिए रखा गया हो अपराध नहीं मानी जाएगी।

मानहानि के इन अपराधों के लिए धारा ५००,५०१ व ५०२ में दो वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। लोक शांति को भंग कराने को उकसाने के आशय से किसी को साशय अपमानित करने के लिए इतनी ही सजा का प्रावधान धारा ५०४ में किया गया है।


जो कोई व्यक्ति अपनी मानहानि के लिए मानहानि करने वाले के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवाना चाहता है उसे सीधे यह शिकायत दस्तावेजी साक्ष्य सहित सक्षम क्षेत्राधिकार के न्यायालय के समक्ष लिखित में प्रस्तुत करनी होगी। न्यायालय शिकायत प्रस्तुतकर्ता का बयान दर्ज करेगा, यदि आवश्यकता हुई तो उस के एक दो साक्षियों के भी बयान दर्ज करेगा। इन बयानों के आधार पर यदि न्यायालय यह समझता है कि मुकदमा दर्ज करने का पर्याप्त आधार उपलब्ध है तो वह मुकदमा दर्ज कर अभियुक्तों को न्यायालय में उपस्थित होने के लिए समन जारी करेगा। अभियुक्त के उपस्थित होने पर उस से आरोप बता कर पूछा जाएगा कि वह आरोप स्वीकार करता है अथवा नहीं। आरोप स्वीकार कर लेने पर उस मुकदमे का निर्णय कर दिया जाएगा। यदि अभियुक्तों द्वारा आरोप स्वीकार नहीं किया जाता है तो शिकायतकर्ता और उस के साक्षियों के बयान पुनः अभियुक्तों के सामने लिए जाएंगे, जिस में अभियुक्तों या उन के वकील को साक्षियों से प्रतिपरीक्षण करने का अधिकार होगा। साक्ष्य समाप्त होने के उपरांत अभियुक्तों के बयान लिए जाएंगे।यदि अभियुक्त बचाव में अपना बयान कराना चाहते हैं तो न्यायालय से अनुमति ले कर अपने बयान दर्ज करा सकते हैं। वे अपने किन्ही साक्षियों के बयान भि दर्ज करवा सकते हैं। इस तरह आई साक्ष्य के आधार पर दोनों पक्षों के तर्क सुन कर न्यायालय द्वारा निर्णय कर दिया जाएगा। अपराधिक मामले में अभियुक्तों को दोषमुक्त किया जा सकता है या उन्हें सजा और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। शिकायतकर्ता को अभियुक्तों से न्यायालय का खर्च दिलाया जा सकता है। लेकिन इस मामले में कोई हर्जाना शिकायतकर्ता को नहीं दिलाया जा सकता।

यदि कोई व्यक्ति अपनी मानहानि से हुई हानि की क्षतिपूर्ति प्राप्त करना चाहता है तो उसे, सब से पहले उन लोगों को जिन से वह क्षतिपूर्ति चाहता है एक नोटिस देना चाहिए कि वह उन से मानहानि से हुई क्षति के लिए कितनी राशि क्षतिपूर्ति के रूप में चाहता है। नोटिस की अवधि व्यततीत हो जाने पर वह मांगी गई क्षतिपूर्ति की राशि के अनुरूप न्यायालय शुल्क के साथ सक्षम क्षेत्राधिकार के न्यायालय में वाद दस्तावेजी साक्ष्य के साथ प्रस्तुत कर सकता है। वाद प्रस्तुत करने पर संक्षिप्त जाँच के बाद वाद को दर्ज कर न्यायालय समन जारी कर प्रतिवादियों को बुलाएगा और प्रतिवादियों को वाद का उत्तर प्रस्तुत करने को कहेगा। उत्तर प्रस्तुत हो जाने के उपरांत यह निर्धारण किया जाएगा कि वाद और प्रतिवाद में तथ्य और विधि के कौन से विवादित बिंदु हैं और किस बिन्दु को किस पक्षकार को साबित करना है। प्रत्येक पक्षकार को उस के द्वारा साबित किए जाने वाले बिन्दु पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। अंत में दोनों पक्षों के तर्क सुन कर निर्णय कर दिया जाएगा। यहाँ पर्याप्त साक्ष्य न होने पर दावा खारिज भी किया जा सकता है और पर्याप्त साक्ष्य होने पर मंजूर किया जा कर हर्जाना और उस के साथ न्यायालय का खर्च भी दिलाया जा सकता है।  

 

मानहानि मामले में न्यूज़ चैनल पर सौ करोड़ का दावा

एक भारतीय समाचार चैनल ‘टाइम्स नाओ’ के खिलाफ़ दायर किए गए सौ करोड़ के मानहानि के मुक़दमे में सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले में दख़ल देने से इंकार करते हुए अदालत में पैसे जमा कराए जाने को सही ठहराया है.
यह मामला साल 2008 का है जब समाचार चैनल ने धोखाधड़ी के एक मामले में गलती से सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायधीश की तस्वीर जारी कर दी थी. यह गलत तस्वीर 15 सेकेंड के लिए टेलिविज़न पर जारी रही थी.

इसके हर्जाने के रुप में निचली अदालत ने समाचार चैनल को कोर्ट में 20 करोड़ रुपए नकद और 80 करोड़ रुपए बैंक गारंटी के रुप में जमा कराने का आदेश दिया था.
सोमवार को सुनाए गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश में उसे कोई गलती नहीं दिखती और इस फैसले में दख़ल के लिए उनके पास कोई कारण नहीं.’
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद टाइम्स ग्लोबल ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड से संबंधित यह मामला हाईकोर्ट में जारी रहेगा.
इस बीच ‘टाइम्स नाओ’ के मुख्य संपादक अरनब गोस्वामी ने सोमवार शाम इस मामले को लेकर पूर्व जज पीबी सांवत से माफ़ी मांगते हुए कहा कि चैनल इस गलती से जस्टिस सावंत की छवि को हुए नुकसान के लिए माफ़ी मांगता है और यह भूल ब्रॉडकास्ट के दौरान 15 सेकेंड के लिए हुई एक गड़बड़ी का नतीजा है


प्रेस की स्वतंत्रता बनाम. न्यायालय की मानहानि

कानून का शासन लोकतांत्रिक समाज की नींव है. न्यायपालिका कानून के नियम के संरक्षक है. लोगों को न्याय के न्यायालयों में विश्वास को कलंकित हो ,की अनुमति नहीं कर सकते हैं, कम या किसी भी व्यक्ति की तिरस्कारपूर्ण व्यवहार द्वारा नष्ट. यदि न्यायपालिका भावना जिसके साथ वे पवित्रता से सौंपा गया है ,अपने कर्तव्यों और कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए और सच प्रदर्शन है, गरिमा और न्यायालयों के अधिकार और सम्मान हर कीमत पर संरक्षित किया जाना है. न्यायपालिका की नींव विश्वास और इसके लिए निडर और निष्पक्ष न्याय देने की क्षमता में लोगों का विश्वास है. न्यायालयों अदालत की अवमानना के लिए दंडित करने के असाधारण शक्तियों, जो कार्य करता है, जो विधि के प्राधिकार को कमजोर और यह बदनामी द्वारा अनादर में लाने की संभावना है. में लिप्त के साथ सौंपा गया है. एक निर्णय या पिछले आचरण के संबंध में एक न्यायाधीश पर हमले न्याय के कारण प्रशासन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यदि न्यायपालिका में विश्वास नष्ट हो जाता है, न्याय के कारण प्रशासन निश्चित रूप से ग्रस्त है.
शक्ति और मीडिया की पहुंच, दोनों के रूप में अच्छी तरह के रूप में प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक जबरदस्त है. यह जनहित के हित में प्रयोग किया गया है. एक स्वतंत्र प्रेस के एक बहुत महत्वपूर्ण स्तंभ है जिस पर कानून और लोकतंत्र टिकी के शासन की नींव है. उसी समय, यह भी आवश्यक है कि स्वतंत्रता अत्यंत जिम्मेदारी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए. यह दुरुपयोग किया जा नहीं करना चाहिए. यह एक लाइसेंस के रूप में अन्य संस्थाओं को बदनाम में नहीं माना जाना चाहिए. कोई खबर संवेदीकरण के कारण, बस में करने के लिए कुछ भी नहीं कर ,बाहर की कोशिश करने के लिए पदावनत किया गया है. जहां प्रलोभन के लिए विशेष रूप से उन संस्थाओं या व्यक्तियों जो कार्यालय की प्रकृति से जवाब नहीं कर सकते की कीमत पर बदनामी द्वारा अनादर में लाने की संभावना है , ऐसे प्रलोभन का विरोध हो गया है और यह कानून के कार्य के रूप में स्पष्ट मार्गदर्शन दे क्या अनुमति है और क्या अनुमति नहीं है .. हालांकि मीडिया, सार्वजनिक हित, सार्वजनिक अच्छा या ऐसे किसी बयान की रिपोर्ट के लिए एक न्यायिक कार्य या एक अदालत के फैसले के उचित आलोचना करने के लिए रिसॉर्ट में कर सकते हैं, यह घृण्य कास्टिंग पर से बचना चाहिए, या नामूसी करना अनुचित मंशा या निजी पूर्वाग्रह न्यायाधीश. न ही वे न्यायपालिका या एक न्यायालय को ग़ुस्से में नहीं लाना चाहिए, या बनाने या एक न्यायाधीश के खिलाफ क्षमता और अखंडता की कमी के व्यक्तिगत आरोपों. झूठी खबर के साथ प्रयोग किया जाना ,एक सार्वजनिक सेवा नहीं है.
एक फैसले का कोई आलोचना, लेकिन जोरदार न्यायालय की अवमानना के लिए प्रदान की यह उचित शिष्टाचार और अच्छे विश्वास की सीमा के भीतर रखा जाता है. एक फैसले ,एक सार्वजनिक दस्तावेज है या जो है एक निर्णय के निष्पक्ष और उचित आलोचना एक न्याय के प्रशासन के साथ संबंध अवमानना का गठन नहीं होता .न्यायाधीश के एक सार्वजनिक कार्य है. यह एक बात कहना है कि के रूप में खुलासा तथ्यों पर निर्णय सबूत या कानून के साथ अनुरूप लागू नहीं किया गया है सही नहीं है है. लेकिन यह पूरी तरह अलग है कहना है कि न्यायाधीश को एक पूर्व स्वभाव आरोपी या जज रिश्वत गया है, या टिप्पणी है कि के रिटायर होने के बारे में एक न्यायाधीश बिक्री के लिए उपलब्ध है और एक जंगली आरोप है कि जज कोई हिम्मत नहीं है, बरी कोई ईमानदारी और अमीर लोगों या भाषण में कहा कि निर्णय बकवास है और एक कूड़ेदान में फेंक दिया जाना चाहिए सज़ा पर्याप्त शक्तिशाली नहीं है के लिए एक निष्पक्ष आलोचना हो नहीं कहा और किया जा सकता है और कानून के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता है. ऐसे मामलों निष्पक्ष और वास्तविक आलोचना की सीमा को पार किया है और एक स्पष्ट और न्यायपालिका की गरिमा और प्रतिष्ठा को प्रभावित करने की प्रवृत्ति है.

 


 

 

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