एक लम्हा एक पल
कैसा है वो एक लम्हा जो मुझे पल पल सताता है.......
न जाने यह मेरा दिल क्या चाहता है.......
छू लूं मैं भी अब आसमां को, बस यही मंजर अब नजर आता है.......
काश! कि निकल आये अब किसी कौने से रौशनी की किरण.......
क्यूँ ये सर बार बार अँधेरे में टकराता है........
न जाने कौन सा है वो लम्हा जो मुझे पल पल सताता है.......
काश! कि मंजिल अब आ जाए नज़रों के सामने.......
मगर ये काश! भी तो कमबख्त काश ही रह जाता है.......
न जाने कब आएगा वो लम्हा जो मुझे पल पल सताता है.......
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